रविवार, 23 सितंबर 2007

विष्णु नागर की एक कविता

यह मेरा एक और ब्लॉग है । यहाँ छपी कविता काफी पहले चिपकाई थी पर कल से यह सार्वजनिक हो गई है। यहाँ अब कभी-कभी कविता या कुछ कविता से जुड़ा दिखा करेगा....



अखिल
भारतीय लुटेरा

(१)

दिल्ली का लुटेरा था अखिल भारतीय था
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता था

लुटनेवाला चूँकि बाहर से आया था
इसलिए फर्राटेदार हिंदी भी नहीं बोलता था
लुटेरे को निर्दोष साबित होना ही था
लुटनेवाले ने उस दिन ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना की कि
भगवान मेरे बच्चों को इस दिल्ली में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाला जरूर बनाए

और ईश्वर ने उसके बच्चों को तो नहीं
मगर उसके बच्चों के बच्चों को जरूर इस योग्य बना दिया।

(२)

लूट के इतने तरीके हैं
और इतने ईजाद होते जा रहे हैं
कि लुटेरों की कई जातियाँ और संप्रदाय बन गए हैं
लेकिन इनमें इतना सौमनस्य है कि
लुटनेवाला भी चाहने लगता है कि किसी दिन वह भी लुटेरा बन कर दिखाएगा।

(३)
लूट की धंधा इतना संस्थागत हो चुका है
कि लूटनेवाले को शिकायत तभी होती है
जब लुटेरा चाकू तान कर सुनसान रस्ते पर खड़ा हो जाए
वरना वह लुट कर चला आता है
और एक कप चाय लेकर टी।वी। देखते हुए
पनी थकान उतारता है।

(४)

जरूरी नहीं कि जो लुट रहा हो
वह लुटेरा न हो
हर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि लूट का लाइसेंस सिर्फ उसे नहीं मिला है
सबको अपने-अपने ठीये पर लूटने का हक है
इस स्थिति में लुटनेवाला अपने लुटेरे से सिर्फ यह सीखने की कोशिश करता है कि
क्या इसने लूटने का कोई तरीका ईजाद कर लिया है जिसकी नकल की जा सकती है।

(५)

आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो
फलां जगह फलां दिन फलां समय
और लुटेरों को भी लूटने चने आते हैं
ठट्ठ के ठट्ठ लोग
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।

(6)

होते-होते क दिन इतने लुटेरे हो गए कि
फी लुटेरा एक ही लूटनेवाला बचा
और ये लुटनेवाले पहले ही इतने लुट चुके थे कि
खबरें आने लगीं कि लुटेरे आत्महत्या कर रहे हैं
इस पर इतने आँसू बहाए गए कि लुटनेवाले भा रोने लगे
जिससे इतनी गीली हो गई धरती कि हमेशा के लिए दलदली हो गई।

15 टिप्‍पणियां:

अफ़लातून ने कहा…

विष्णु नागर और बोधिसत्व को शुभकामना । सरस्वती में सातत्य हो ।

ALOK PURANIK ने कहा…

बेहतरीन, कविता ने तो लूट लिया भई।

अभय तिवारी ने कहा…

भई नए ब्लॉग पर बधाई हो..!

Udan Tashtari ने कहा…

बधाई हुए इस नये स्थल की. ऐसी ही बेहतरीन कवितायें पढ़ने मिलती रहें, बस और क्या चाहिये. शुभकामनायें.

Priyankar ने कहा…

वा जी वा !

हमको बोले भर और खुद शुरु हो गए .

अच्छा लगा कि चिट्ठे की पहली कविता 'समकालीन सृजन' के कविता अंक से है . यह सचमुच विष्णु जी की बहुत अच्छी कविता है .

Bahadur Patel ने कहा…

bodhisatva ji aapane bahut achchhi kavita padhavai.bahut achchha laga. mere yahan aapaka swagat hai.

Unknown ने कहा…

hindi blog dekh kar prasannta hui aur aapki kavita ne man loot liya hardik shubhkamana.

दर्पण साह ने कहा…

dwij>>vinay patrika(apka any blog)>>sarswati is tarah yahan pahuncha hoon. Aana safal raha...
dil 'loot' liya apki kshnikaaon ne...

प्रदीप कांत ने कहा…

आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो
फलां जगह फलां दिन फलां समय
और लुटेरों को भी लूटने चने आते हैं
ठट्ठ के ठट्ठ लोग
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।

- भयानक बाजार वाद है और हम लुटे जा रहे हैं.

श्रेष्ठ कवि की श्रेष्ठ और मेरी पसन्दीदा कविताएँ पढने को मिली. धन्यवाद.

Kuwait Gem ने कहा…

इस उभोक्तावादी समय नें हम सभी को लूटवानें की पूरी आजादी दी है की ये हमारे खेत खलियान है, ये हमारे औजार है, ये हमारे स्ंसाधन है, ये हमारे रिश्तें है, आओ, इन्हें डॉलर में बदलों रचना.

Next Generation ने कहा…

इस उभोक्तावादी समय नें हम सभी को लूटवानें की पूरी आजादी दी है की ये हमारे खेत खलियान है, ये हमारे औजार है, ये हमारे स्ंसाधन है, ये हमारे रिश्तें है, आओ, इन्हें डॉलर में बदलों रचना. श्रेष्ठ कवि की श्रेष्ठ रचना
chandrapal1982@gmail.com

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....

लक्ष्‍मीकांत त्रिपाठी ने कहा…

बहुत अच्‍छी कविता है,बहुत पसंद आई। धन्‍यवाद स्‍वीकार करें।
लक्ष्‍मीकांत त्रिपाठी, लखनऊ।

daanish ने कहा…

लुटेरों के कितने ही नाम
रख दिए जाएं
रच दिए जाएं
उन्हें
लुटेरा कहना ही मुनासिब लगता है ...

प्रभावशाली कृति .