यह मेरा एक और ब्लॉग है । यहाँ छपी कविता काफी पहले चिपकाई थी पर कल से यह सार्वजनिक हो गई है। यहाँ अब कभी-कभी कविता या कुछ कविता से जुड़ा दिखा करेगा....
अखिल भारतीय लुटेरा
(१)
दिल्ली का लुटेरा था अखिल भारतीय था
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता था
लुटनेवाला चूँकि बाहर से आया था
इसलिए फर्राटेदार हिंदी भी नहीं बोलता था
लुटेरे को निर्दोष साबित होना ही था
लुटनेवाले ने उस दिन ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना की कि
भगवान मेरे बच्चों को इस दिल्ली में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाला जरूर बनाए
और ईश्वर ने उसके बच्चों को तो नहीं
मगर उसके बच्चों के बच्चों को जरूर इस योग्य बना दिया।
(२)
लूट के इतने तरीके हैं
और इतने ईजाद होते जा रहे हैं
कि लुटेरों की कई जातियाँ और संप्रदाय बन गए हैं
लेकिन इनमें इतना सौमनस्य है कि
लुटनेवाला भी चाहने लगता है कि किसी दिन वह भी लुटेरा बन कर दिखाएगा।
(३)
लूट की धंधा इतना संस्थागत हो चुका है
कि लूटनेवाले को शिकायत तभी होती है
जब लुटेरा चाकू तान कर सुनसान रस्ते पर खड़ा हो जाए
वरना वह लुट कर चला आता है
और एक कप चाय लेकर टी।वी। देखते हुए
पनी थकान उतारता है।
(४)
जरूरी नहीं कि जो लुट रहा हो
वह लुटेरा न हो
हर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि लूट का लाइसेंस सिर्फ उसे नहीं मिला है
सबको अपने-अपने ठीये पर लूटने का हक है
इस स्थिति में लुटनेवाला अपने लुटेरे से सिर्फ यह सीखने की कोशिश करता है कि
क्या इसने लूटने का कोई तरीका ईजाद कर लिया है जिसकी नकल की जा सकती है।
(५)
आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो
फलां जगह फलां दिन फलां समय
और लुटेरों को भी लूटने चने आते हैं
ठट्ठ के ठट्ठ लोग
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।
(6)
होते-होते क दिन इतने लुटेरे हो गए कि
फी लुटेरा एक ही लूटनेवाला बचा
और ये लुटनेवाले पहले ही इतने लुट चुके थे कि
खबरें आने लगीं कि लुटेरे आत्महत्या कर रहे हैं
इस पर इतने आँसू बहाए गए कि लुटनेवाले भा रोने लगे
जिससे इतनी गीली हो गई धरती कि हमेशा के लिए दलदली हो गई।
रविवार, 23 सितंबर 2007
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15 टिप्पणियां:
विष्णु नागर और बोधिसत्व को शुभकामना । सरस्वती में सातत्य हो ।
बेहतरीन, कविता ने तो लूट लिया भई।
भई नए ब्लॉग पर बधाई हो..!
बधाई हुए इस नये स्थल की. ऐसी ही बेहतरीन कवितायें पढ़ने मिलती रहें, बस और क्या चाहिये. शुभकामनायें.
वा जी वा !
हमको बोले भर और खुद शुरु हो गए .
अच्छा लगा कि चिट्ठे की पहली कविता 'समकालीन सृजन' के कविता अंक से है . यह सचमुच विष्णु जी की बहुत अच्छी कविता है .
bodhisatva ji aapane bahut achchhi kavita padhavai.bahut achchha laga. mere yahan aapaka swagat hai.
hindi blog dekh kar prasannta hui aur aapki kavita ne man loot liya hardik shubhkamana.
dwij>>vinay patrika(apka any blog)>>sarswati is tarah yahan pahuncha hoon. Aana safal raha...
dil 'loot' liya apki kshnikaaon ne...
आजकल लुटेरे आमंत्रित करते है कि
हम लुट रहे हैं आओ हमें लूटो
फलां जगह फलां दिन फलां समय
और लुटेरों को भी लूटने चने आते हैं
ठट्ठ के ठट्ठ लोग
लुटेरे खुश हैं कि लूटने की यह तरकीब सफल रही
लूटनेवाले खुश हैं कि लुटेरे कितने मजबूर कर दिए गए हैं
कि वे बुलाते हैं और हम लूट कर सुरक्षित घर चले आते हैं।
- भयानक बाजार वाद है और हम लुटे जा रहे हैं.
श्रेष्ठ कवि की श्रेष्ठ और मेरी पसन्दीदा कविताएँ पढने को मिली. धन्यवाद.
इस उभोक्तावादी समय नें हम सभी को लूटवानें की पूरी आजादी दी है की ये हमारे खेत खलियान है, ये हमारे औजार है, ये हमारे स्ंसाधन है, ये हमारे रिश्तें है, आओ, इन्हें डॉलर में बदलों रचना.
इस उभोक्तावादी समय नें हम सभी को लूटवानें की पूरी आजादी दी है की ये हमारे खेत खलियान है, ये हमारे औजार है, ये हमारे स्ंसाधन है, ये हमारे रिश्तें है, आओ, इन्हें डॉलर में बदलों रचना. श्रेष्ठ कवि की श्रेष्ठ रचना
chandrapal1982@gmail.com
बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
बहुत अच्छी कविता है,बहुत पसंद आई। धन्यवाद स्वीकार करें।
लक्ष्मीकांत त्रिपाठी, लखनऊ।
लुटेरों के कितने ही नाम
रख दिए जाएं
रच दिए जाएं
उन्हें
लुटेरा कहना ही मुनासिब लगता है ...
प्रभावशाली कृति .
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